Introduction of Earth for SSC Railway | पृथ्वी का परिचय

Introduction of Earth for SSC Railway | पृथ्वी का परिचय

Introduction of Earth for SSC Railway | पृथ्वी का परिचय

पृथ्वी

पृथ्वी  पूरे ब्रह्मांड में एक मात्र एक ऐसी ज्ञात जगह है जहां जीवन का अस्तित्व है। इस ग्रह का निर्माण लगभग 4.54 अरब वर्ष पूर्व हुआ था और इस घटना के 1 अरब वर्ष पश्चातï यहां जीवन का विकास शुरू हो गया था। तब से पृथ्वी के जैवमंडल ने यहां के वायु मण्डल में काफी परिवर्तन किया है। समय बीतने के साथ ओजोन पर्त बनी जिसने पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के साथ मिलकर पृथ्वी पर आने वाले हानिकारक सौर विकरण को रोककर इसको रहने योग्य बनाया।


पृथ्वी का द्रव्यमान 6.569&1021 टन है। पृथ्वी बृहस्पति जैसा गैसीय ग्रह न होकर एक पथरीला ग्रह है। पृथ्वी सभी चार सौर भौमिक ग्रहों में द्रव्यमान और आकार में सबसे बड़ी है। अन्य तीन भौमिक ग्रह हैं- बुध, शुक्र और मंगल। इन सभी ग्रहों में पृथ्वी का घनत्व, गुरुत्वाकर्षण, चुम्बकीय क्षेत्र, और घूर्णन सबसे ज्यादा हैं।

ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी सौर-नीहारिका (nebula) के अवशेषों से अन्य ग्रहों के साथ ही बनी। निर्माण के बाद पृथ्वी गर्म होनी शुरू हुई। इसका अंदरूनी हिस्सा गर्मी से पिघला और लोहे जैसे भारी तत्व पृथ्वी के केंद्र में पहुँच गए। लोहा व निकिल गर्मी से पिघल कर द्रव में बदल गए और इनके घूर्णन से पृथ्वी दो ध्रुवों वाले विशाल चुंबक में बदल गई। बाद में पृथ्वी में महाद्वीपीय विवर्तन या विचलन जैसी भूवैज्ञानिक क्रियाएँ पैदा हुईं। इसी प्रक्रिया से पृथ्वी पर महाद्वीप, महासागर और वायुमंडल आदि बने।

पृथ्वी की गतियाँ
पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर घूमती रहती है। इसकी दो गतियाँ हैं-

घूर्णन (Rotation)

पृथ्वी के अपने अक्ष  पर चक्रण को घूर्णन कहते हैं। पृथ्वी पश्चिम से पूर्व दिशा में घूमती है और एक घूर्णन पूरा करने में 23 घण्टे, 56 मिनट और 4.091 सेकेण्ड का समय लेती है। इसी से दिन व रात होते हैं।

परिक्रमण (Revolution)

पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अंडाकार पथ पर 365 दिन, 5 घण्टे, 48 मिनट व 45.51 सेकेण्ड में एक चक्कर पूरा करती है, जिसे उसकी परिक्रमण गति कहते हैं। पृथ्वी की इस गति की वजह से ऋतु परिवर्तन होता है।

अक्षांश रेखाएँ (Latitude)

ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खींची गईं काल्पनिक रेखाओं को अक्षांश रेखाएं कहते हैं। अक्षांश रेखाओं की कुल संख्या 180 है। प्रति 1श की अक्षांशीय दूरी लगभग 111 किमी. के बराबर होते हैं। अक्षांश रेखाओं में

तीन प्रमुख रेखाएं हैं-

कर्क रेखा (Tropic of cancer)- यह रेखा उत्तरी गोलाद्र्ध में भूमध्यरेखा के समानांतर 23 30' पर खींची गई है।
मकर रेखा (Tropic of Capricorn)- यह रेखा दक्षिणी गोलाद्र्ध में भूमध्य रेखा के समानांतर 23 30' अक्षांश पर खींची गयी है।
विषुवत अथवा भूमध्य रेखा (Equator)- यह रेखा पृथ्वी को उत्तरी गोलाद्र्ध (Northern Hemisphere) और दक्षिणी गोलाद्र्ध (Southern Hemisphere)-दो बराबर भागों में बाँटती है। इसे शून्य अंश अक्षांश रेखा भी कहते हैं।


प्रत्येक वर्ष दो संक्रांति होती हैं
कर्क संक्रांति (Summer Solistice) - 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत चमकता है। इस स्थिति को कर्क संक्रांति (Summer Solistice) कहते हैं।
मकर संक्रांति (Winter Solistice)- 22 दिसम्बर को सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत चमकता है। इस स्थिति को मकर संक्रांति (Winter Solistice) कहते हैं।

देशांतर रेखाएँ (Longitudes)
पृथ्वी पर  दो अक्षांशों के मध्य कोणीय दूरी को देशांतर कहा जाता है। भूमध्य रेखा पर 1श के अंतराल पर देशांतरों के मध्य दूरी 111.32 किमी. होती है। दुनिया का मानक समय इसी रेखा से निर्धारित किया जाता है। इसीलिए इसे प्रधान मध्यान्ह देशांतर रेखा (Prime Meridian) कहते हैं। लंदन का एक नगर ग्रीनविच इसी रेखा पर स्थित है, इसलिए इस रेखा को ग्रीनविच रेखा भी कहते हैं। 1श देशांतर की दूरी तय करने में पृथ्वी को 4 मिनट का समय लगता है।

स्थानीय समय (Local Time)- पृथ्वी पर स्थान विशेष के सूर्य की स्थिति से परिकल्पित समय को स्थानीय समय कहते हैं।
मानक समय (Standard Time)- किसी देश अथवा क्षेत्र विशेष में किसी एक मध्यवर्ती देशांतर रेखा के स्थानीय समय को पूरे देश अथवा क्षेत्र का समय मान लिया जाता है जिसे मानक समय कहते हैं। भारत के 82 30' पूर्व देशांतर रेखा के स्थानीय समय को पूरे देश का मानक समय माना गया है।
अंतर्रा्रीय तिथि रेखा (International Date Line) - यह एक काल्पनिक रेखा है जो प्रशांत महासागर के बीचों-बीच 180श देशांतर पर उत्तर से दक्षिण की ओर खींची गई है। इस रेखा के पूर्व व पश्चिम में एक दिन का अंतर होता है।

सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है जबकि चंद्रमा पृथ्वी का। जब सूर्य एवं चंद्रमा के मध्य पृथ्वी आ जाती है तो पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पडऩे लगती है, जिससे ग्रहण पड़ता है जो  चंद्र ग्रहण कहलाता है। जब पृथ्वी एवं सूर्य के मध्य चंद्रमा आ जाता है तो उसकी छाया पृथ्वी पर पड़ती है जिससे सूर्यग्रहण की घटना होती है।